Tuesday, January 06, 2009

भइया...तुम्हारे जन्मदिवस पर...

एक बार प्रकृति ने इश्वर से कहा-
"विश्व में अंधकार बढ़ रहा है,
सच का सूरज न जाने क्यों ढल रहा है,
हमें तुम्हारा दिव्यांश चाहिए
ढलते हुए सूरज को जो थाम ले
वो प्रकाश चाहिए"
सुनकर ये सारा कथन
इश्वर ने किया गंभीर मनन
एक अनोखी घटना घटी...
और हो गया तुम्हारा सृजन
एक नई विभा दीप्त हुई
जीवन जगमगा उठा
फूलो ने सुगंध फैलाई
आध्यात्म का संचार हुआ
तुम वास्तव में हमारे जीवन के "प्रणव" हो...
हम इश्वर के प्रति कृतज्ञ है,
जो हमें तुम्हारी शाखाओ से बांधे रखा है,
तुम एक नया इतिहास रच सको
इसीलिए प्रकृति को बनाये रखा है...

प्रश्न

पत्थर में पूजते है तुमको

लेकर एक आश;

सदा रहोगे हमारे इर्द-गिर्द पास

पर हे विधाता !

ये कैसा अनर्थ?

नही रह गया वश में हमारे ये वक्त

क्यों मानवता बनी है द्रव्य हीन रक्त?

क्यों उपहास पात्र बना बैठा है?

तुम्हारा ये भक्त॥

जवाब दो.....!!!

जाग तुझे बनना है सूरज

कहती है धरती तुझसे हे नवयुवक
जाग तुझे बनना है सूरज

क्या तुझमे है चाह नही...
या फ़िर है विश्वाश नही...
अपनी चाहत के बल पर
तुम चूम गगन को उठ कर
जाग तुझे बनना है सूरज

तू है चिराग,कर दे विनाश
न देखे रात(अंधकार), हो तू प्रकाश
क्यों नीर बना बैठा है
तू है मुरख.......
जाग तुझे बनना है सूरज

तुझमे है शक्ति, मन की भक्ति
उत्साह भरी है तेरी हस्ती
दृढ़ता और साहस जैसी ही
है तेरी भी मूरत
जाग तुझे बनना है सूरज॥

हमको आगे बढ़ना होगा...

हमको आगे बढ़ना होगा
जीवन की गति में मिलना होगा
सही राह अब कौन चुनेगा?
यह प्रश्न हल करना होगा।
हमको आगे .................

चाहे मग में बढाये आए,
तुफानो के बादल छाये
खग के जैसे दीर्घ गगन में,
पंख पसारे उड़ना होगा।
हमको आगे................

त्याग सभी सुख और प्रेम
मात-पिता का पूर्ण स्नेह
छोड़ इन्हे dehlij द्वार पर
अंधकार से लड़ना होगा।
हमको आगे.................

हे नविन आवाज़ सुनो,
भीषण रुदन विलाप सुनो,
भारत माँ की चीत्कारों का
प्रतिशोध तुम्हे ही गढ़ना होगा।
हमको आगे.......................

जीवन नही विलास भोग का
यह भूखा है बलिदानों का
सीच इसे अपने लोहित से,
नए vishv को रचना होगा।
हमको आगे.....................

विश्रांति...

उलझा हुआ मै,

अंतर्द्वंद की धुरी पर

निरंतर घूमता.......

हजारो प्रश्नों के अक्षांश

और...

उत्तरों के देशांतर

उनके जलो में

उलझा हुआ सा॥

सतत गतिशील

विश्राम नही,

शान्ति नही,

ठहराव नही,

................

सुलाझना चाहता

तो नित नए जालो में

फ़िर-फ़िर उलझ जाता

और...

उनसे सृजित उपग्रह

फ़िर घुमने लगते इर्द-गिर्द

मेरे ही

नई-नई धुरियों पर

इन सब में विस्तृत

किंतु-

उलझा हुआ मै

विश्रांति ???

शायद मृत्यु में हो........

किंतु तब तक

निरंतर

उलझा हुआ मै....!!!