बापू .......
इस बार की आहा ज़िन्दगी के अंक में बापू आप पर एक लेख छपा था, उसमे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का एक कथन था " आने वाले कल में लोग इस बात पर आश्चर्य करेंगे की की एक छोटा सा हाड़ मांस का जादुई व्यक्तित्व वाला भी कोई था . " रोज़- रोज़ टीवी और अखबारों को देख पढ़ कर बार- बार मन कई प्रश्नों में उलझ जाता है। बापू दिल्ली और ऐसे ही देश के कई शहरों में होने वाला अमानवीय बलात्कार , फिर साम्प्रदायिक दुर्भावना बढाने वाले वक्तव्य , कश्मीर में हुई सैनिको की हत्या और ऐसा ही बहोत कुछ क्या नहीं हमें सोचने पर मजबूर कर रहा कि हम फिर से आज़ादी की लडाई लड़ रहे है जो स्वयं और अपने ही बनाये हुए मूल्यों के साथ है। आपके द्वारा बरसो पहले देखा हुआ स्वराज का स्वप्न आज भी उतना ही प्रासंगिक जान पड़ता हैहै जब की हम अपनी आज़ादी के छप्पन वर्ष पूरे कर चुके है। कहा से आई थी अप में वो दूरदृष्टि जो भ्हाप लिया था आपने कि बटवारा हमेशा-हमेशा के लिए बाट देगा हमे दो मुल्को में ही नहीं, अपितु दो विचारधाराओ में जो कभी भी एक- दुसरे को अपना नहीं पाएंगे, अमन फिर कभी नहीं फैल सकेगा यहाँ की आबो हवा में। और हम हमेशा ही अपनी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा आपसी लड़ियों में ही व्यर्थ करते रहेंगे। कभी आतंकवादी निर्ममता तो कभी सीमा पर क्षेत्रफल बढ़ने की जद्दो-जहद, 1947 में हो चुके बटवारे को हम अब तक नापते रहेंगे।
इस बार की आहा ज़िन्दगी के अंक में बापू आप पर एक लेख छपा था, उसमे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का एक कथन था " आने वाले कल में लोग इस बात पर आश्चर्य करेंगे की की एक छोटा सा हाड़ मांस का जादुई व्यक्तित्व वाला भी कोई था . " रोज़- रोज़ टीवी और अखबारों को देख पढ़ कर बार- बार मन कई प्रश्नों में उलझ जाता है। बापू दिल्ली और ऐसे ही देश के कई शहरों में होने वाला अमानवीय बलात्कार , फिर साम्प्रदायिक दुर्भावना बढाने वाले वक्तव्य , कश्मीर में हुई सैनिको की हत्या और ऐसा ही बहोत कुछ क्या नहीं हमें सोचने पर मजबूर कर रहा कि हम फिर से आज़ादी की लडाई लड़ रहे है जो स्वयं और अपने ही बनाये हुए मूल्यों के साथ है। आपके द्वारा बरसो पहले देखा हुआ स्वराज का स्वप्न आज भी उतना ही प्रासंगिक जान पड़ता हैहै जब की हम अपनी आज़ादी के छप्पन वर्ष पूरे कर चुके है। कहा से आई थी अप में वो दूरदृष्टि जो भ्हाप लिया था आपने कि बटवारा हमेशा-हमेशा के लिए बाट देगा हमे दो मुल्को में ही नहीं, अपितु दो विचारधाराओ में जो कभी भी एक- दुसरे को अपना नहीं पाएंगे, अमन फिर कभी नहीं फैल सकेगा यहाँ की आबो हवा में। और हम हमेशा ही अपनी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा आपसी लड़ियों में ही व्यर्थ करते रहेंगे। कभी आतंकवादी निर्ममता तो कभी सीमा पर क्षेत्रफल बढ़ने की जद्दो-जहद, 1947 में हो चुके बटवारे को हम अब तक नापते रहेंगे।
अब आपके जैसा नोवाखली में शांति और अमन के लिए पश्चाताप करने वाला कोई नहीं है, हमारे यहाँ सदभावना और शांति के लिए यात्रायें तो होती है, पर वो विदेशो में दूतावासों तक और अपने शहरों में बैरियर से घिरी सडको तक ..........। हम हो भी नहीं सकते आपके जैसे क्युकि आप जन के राम थे और हम मन से भी राम नहीं है। रोज़ मै भी देखती हूँ सडको पर बाल मज़दूरी, भूखे-नंगे , ठण्ड से ठिठुरते लोग , पर न तो मै आपकी तरह संकल्प ले पति हूँ,और न ही भौतिक सुखो की ही त्याग पति हूँ, बस मन में एक टीश के साथ ये लेख ही लिख पाने में समर्थ हूँ।
मैंने ज्यादा कुछ साहित्यिक शोध अध्ययन तो नहीं किया है पर जितना कुछ भी समझ पाई हूँ , उसमे आपको भगवान् से कही कम नहीं पाती। और फिर आश्चर्य और वितृष्णा से सोचती हूँ कि क्यों हुई इस अहिंषा और सत्य के पुजारी की हिंशात्मक हत्या? और अगर किसी और के साथ ऐसा हुआ होता तो निश्चय ही आप उस हत्यारे के अपराधो का प्रायश्चित करते स्वयं पाए जाते, आप निश्चय ही अनशन करते और अपने आदर्शवादी विचारो में इसकी जिम्मेदारी स्वयं लेते, पर हम अपने किये का भी जिम्मा नहीं उठा पाते। आपके आदर्श व्यक्तित्व से सीखा है बापू कि दोष न देकर जिमेदारी लेना सीखना होगा। स्वयं की, अपनो की, और अपने देश की। इसीलिए अगर यहाँ पर मैंने किसी के दोष गिनाये हो या शिकायत की हो तो, बापू मै आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ क्युकी तब तो मेरे शब्द आपको स्वीकार्य नहीं होंगे। मैंने तो बस आपके होने की प्रश्न्गिकता का एक मिला-जुला रूप प्रस्तुत करने की कोशिश भर की है।
अभी भी जब मदर टेरीसा में आपकी निःस्वार्थ सेवा, अन्ना हजारे में आपके आमरण अनशन को, अब्दुल कलाम के विज़न 2020 में आपके स्वराज जो पुनः जिवंत होते देखा है और ऐसे ही अन्य कई उदहारण है जो आपके मूल्यों को जी रहे है, सहेजे हुए है। आगामी 30 जनवरी को लोग फिर से आपको याद करेंगे, राजघाट पर पुष्प अर्पित करेंगे सब। पर फिर भी बापू आप नोटों पर छपे चित्रों में , दीवारों पर टंगी तस्वीरों में, सडको चौराहों पर खड़ी मूर्तियों में कही खो गये है। और हमारे विचार, मूल्य, नीतिया दिन-ब-दिन जर्जर होते जा रहे है। हम याद करते है आपको सिर्फ तारीखों में,और खोते जा रहे है अपने जीवन से। तुम-मै की राजनीती, साम्प्रदायिक हिंसा , चाँद जमीनी टुकड़ो के लिए हने वाली वर्षो लम्बी लड़ाइया , नारी का होता सामाजिक और मानसिक शोषण दीमक की तरह जर्जर करते जा रहे है हमारी बुनियादी धरोहर को। हमारे इस मरते हुए देश को फिर से उबारने के लिए आजाओ हे जन सेवक , जन राम! बस सतर्क रहना , क्युकी हम ज्यादा धूर्त है, तकनिकी रूप से अधिक बलवान है( अभी हाल ही में झारखण्ड में जवान के पेट में पाए गए बम पर ), हर कदम पर तुम्हारे लिए एक नया चक्रव्यूह रचेंगे, हर शख्स में मिलेगा तुम्हे एक नया नाथू राम गोडसे।