guru ji's grace....
तुम हो सागर, मै थी बूंद
तुमसे मिलकर, हो गयी पूर्ण!!
तुमसे जुडी ये जीवन धारा
"मै" को खोया, तुमको पाया
तुमने किया जो रौशन मुझको
डोर होगया सब अँधियारा
अब जब "सोहम" ज्ञान मिला,
तब समझी थी कितनी मूढ़
तुमसे मिल कर हो गयी पूर्ण!!
नित्य सुदर्शंक्रिया सिखाते
सेवा, प्रेम का मार्ग बताते
सहज नयन से मुस्काके तुम
"सबमे ईश्वर" हो दिखलाते
सबकुछ सिखला बतलाके भी
कभी नहीं जाते हो दूर
तुमसे मिल कर होगई पूर्ण!!
गुरु जी तुमसे जो दिल लग जाये
पुस्पहीन जीवन खिल जाये
फिर कितने भी सुख-दुःख आये
जिन संग आप वो क्यों मुरझाये
"तुम" "मै" का सब भेद मिटा
सारे भाव हो गए शुन्य
तुमसे मिलकर होगई पूर्ण!!
तुमसे मिलकर होगई पूर्ण!!