कुहासे में थोडा नीलापन है...
ये नयी विजय का सुभारम्भ है,
पुनः एक नयी यात्रा,
एक नयी ख़ोज और सोच
अकर्मण्यता का अँधेरा
दूर होता धूमिल होने को है,
कुहासे में थोडा नीलापन है...
दीप्त होते छितिज से
जो धुआ धुआ सा लहरो पे,
हवा संग झिलमिला रहा है,
हाँ, सूर्य मेरा अब पूर्ण होने को है
कुहासे में......
नया नया कुछ पुलिंदा सा
देर से ही सही बनेगा जरुर
मेरा स्वप्न विश्व विजय का
देर से ही सही खिलेगा जरुर
बर्फीले शिशिर के बाद
हेमंत का बसेरा होने को है
कुहासे में......
लहरो पे भरोसा
अम्बुधि को समर्पण
यही इस यात्रा का सारांश है
धन्य है वह
जो बाधा चले डटा रहे
वाही वीर सौर्य है,संधान है
विजयी है वह, जो नियति से नहीं
मन से जिवंत है
अपनी जीत से विश्वस्त है
अनंत कालिक इस यात्रा का,
इक और वृतांत होने को है
कुहासे में....
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