Saturday, May 28, 2011

दादीमा तुम बहुत याद आती हो.

दादीमा तुम बहुत याद आती हो.
जब भी मन उदास और
सत्व कहीं खोने लगता है,
जब भीड़ में शामिल पर
अकेला मन,
तुम्हे ढूंढने लगता है
तब खिलखिलाती, पुचकारती,
नैनों से स्नेह लुटती हुई,
तुम बहुत याद आती हो

जब कभी गिर जाये हम
और कहीं चोट लग जाये,
या कभी लड़ते-झगड़ते
किसी की मर पड़ जाये,
तब डाटती-डपटती, सब पर चिल्लाती
ममता से मलहम लगाती हुई,
तुम बहुत याद आती हो.

आज जब हर कोई व्यस्त है
निजी स्वार्थो में ग्रस्त है
हनी-लाभ के गडित से त्रस्त है
तब सदैव दूसरो के लिए जीती
अपने जीवन की याद दिलाती हुई,
तुम बहुत याद आती हो

शायद दूर होकर भी,
मेरे खालीपन में मेरे पास आती हो
दादीमा तुम बहुत याद आती हो

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