guru ji's grace....
तुम हो सागर, मै थी बूंद
तुमसे मिलकर, हो गयी पूर्ण!!
तुमसे जुडी ये जीवन धारा
"मै" को खोया, तुमको पाया
तुमने किया जो रौशन मुझको
डोर होगया सब अँधियारा
अब जब "सोहम" ज्ञान मिला,
तब समझी थी कितनी मूढ़
तुमसे मिल कर हो गयी पूर्ण!!
नित्य सुदर्शंक्रिया सिखाते
सेवा, प्रेम का मार्ग बताते
सहज नयन से मुस्काके तुम
"सबमे ईश्वर" हो दिखलाते
सबकुछ सिखला बतलाके भी
कभी नहीं जाते हो दूर
तुमसे मिल कर होगई पूर्ण!!
गुरु जी तुमसे जो दिल लग जाये
पुस्पहीन जीवन खिल जाये
फिर कितने भी सुख-दुःख आये
जिन संग आप वो क्यों मुरझाये
"तुम" "मै" का सब भेद मिटा
सारे भाव हो गए शुन्य
तुमसे मिलकर होगई पूर्ण!!
तुमसे मिलकर होगई पूर्ण!!
5 comments:
Kya Bat Hai :-) Bahut Badhiyan , Jai Gurudev :-)
Hamne bhi socha tha akashar..
Q na kuch ankaha Kahun "TUJHE".
Ye Kabita Bhi Itni Chanchal Hai..
Ye Soch Ke Kab Sath Hota Hai ?
Jab Bhi Socha Ye Likhun Aur Wo Likhu..
Shabdon Ki Akshamta Dekh Chup Rahta.
Main Kaise Bharun Is Vyapakata Ko..
Kuch Shabdon Me, Main Chup Rahta Hun :-)
har ghat mera saiyaan
khali ghat na koye
balhari main wa ghat par
ja ghat parghat hoye
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