Tuesday, January 06, 2009

विश्रांति...

उलझा हुआ मै,

अंतर्द्वंद की धुरी पर

निरंतर घूमता.......

हजारो प्रश्नों के अक्षांश

और...

उत्तरों के देशांतर

उनके जलो में

उलझा हुआ सा॥

सतत गतिशील

विश्राम नही,

शान्ति नही,

ठहराव नही,

................

सुलाझना चाहता

तो नित नए जालो में

फ़िर-फ़िर उलझ जाता

और...

उनसे सृजित उपग्रह

फ़िर घुमने लगते इर्द-गिर्द

मेरे ही

नई-नई धुरियों पर

इन सब में विस्तृत

किंतु-

उलझा हुआ मै

विश्रांति ???

शायद मृत्यु में हो........

किंतु तब तक

निरंतर

उलझा हुआ मै....!!!

1 comment:

Unknown said...

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