कहती है धरती तुझसे हे नवयुवक
जाग तुझे बनना है सूरज
क्या तुझमे है चाह नही...
या फ़िर है विश्वाश नही...
अपनी चाहत के बल पर
तुम चूम गगन को उठ कर
जाग तुझे बनना है सूरज
तू है चिराग,कर दे विनाश
न देखे रात(अंधकार), हो तू प्रकाश
क्यों नीर बना बैठा है
तू है मुरख.......
जाग तुझे बनना है सूरज
तुझमे है शक्ति, मन की भक्ति
उत्साह भरी है तेरी हस्ती
दृढ़ता और साहस जैसी ही
है तेरी भी मूरत
जाग तुझे बनना है सूरज॥
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