a blog which is a mirror of my feeling, thoughts and words....
पत्थर में पूजते है तुमको
लेकर एक आश;
सदा रहोगे हमारे इर्द-गिर्द पास
पर हे विधाता !
ये कैसा अनर्थ?
नही रह गया वश में हमारे ये वक्त
क्यों मानवता बनी है द्रव्य हीन रक्त?
क्यों उपहास पात्र बना बैठा है?
तुम्हारा ये भक्त॥
जवाब दो.....!!!
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